दोस्तों ये कहानी आपको कुछ सिखाएगी नहीं बल्कि आपके भीतर एक प्रश्न पैदा करेगी और अगर आपने इस प्रश्न का उत्तर जान लिया तो आप कुछ ऐसा सीख सकते हैं जो दुनिया की कोई कहानी आपको सिखा नहीं सकती |
एक बार एक साधु किसी गांव के रास्ते से गुजर रहे थे | तभी पीछे से कोई व्यक्ति आकर उस साधू के सिर पर जोर से डंडा मारता है और डंडा मारकर वहां से भागने लगता है हड़बड़ाहट में उस व्यक्ति के हाथ से उसका डंडा छूट जाता है |
वो साधु पीछे मुड़ते हैं और उस डंडे को उठाते हैं और उस व्यक्ति को आवाज लगाकर कहते हैं कि अरे भाई अपना डंडा तो लेते जाओ |
इस सारी घटना को वहां बैठा एक और व्यक्ति देख रहा होता है | वो व्यक्ति उस साधु के पास जाकर उनसे पूछता है कि साधु महाराज उस व्यक्ति ने आपके सिर पर डंडा मारा है और आप उसे उसका डंडा वापस लौट आ रहे हैं आखिर ऐसा क्यों..??
क्या आपको उस व्यक्ति पर क्रोध नहीं आ रहा ?
क्या आप उसे सबक सिखाना नहीं चाहते ?
मैं जानता हूं कि आप अहिंसा का पालन करते हैं परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि कोई भी आकर आप पर हिंसा करे |
वो साधू मुस्कुराता हैं और उस व्यक्ति से कहता है कि तुम्हें एक छोटी सी घटना बताता हूं | यह घटना कुछ दिन पहले ही मेरे साथ घटी थी |
मैं एक वन से गुजर रहा था | उस वन में एक विशाल पीपल का वृक्ष था | जब मैं उस पेड़ के नीचे से गुजर रहा था तब उस पेड़ की एक सूखी लकड़ी टूटकर मेरे सिर पर आ गिरी और मुझे चोट लग गई |
अब तुम ही बताओ क्या मुझे उस पेड़ पर क्रोध करना चाहिए था ?
साधु की बात सुनकर वह व्यक्ति मन ही मन सोचने लगा कि लगता है ये साधु पगला गया है | इसे तो पेड़ और इंसान के बीच अंतर भी नहीं पता |
वह व्यक्ति उन साधु से कहता है आप मेरे एक प्रश्न का उत्तर दीजिए कि क्या पेड़ और इंसान में कोई अंतर नहीं ?
वो साधु मुस्कुराता है और कहता है कि सामान्य लोगों के लिए अंतर है परंतु मेरे लिए नहीं |
वो व्यक्ति पूछता है ये कैसे संभव है ?
साधु कहता हैं कि दोनों के ही द्वारा चोट पहुंचाने पर मेरे भीतर एक भाव उठा | दोनों में से किसी भी स्थिति में मेरे भीतर क्रोध पैदा ही नहीं हुआ केवल करुणा का भाव पैदा हुआ |
मैंने अपने आपको अपनी साधना से ऐसा बना लिया है कि अब मैं अहिंसा करता नहीं | मेरा स्वभाव ही अहिंसक बन चुका है |
ये छोटी सी कहानी आपके भीतर एक बहुत बड़ा प्रश्न पैदा करती है कि क्या है ऐसा भी बना जा सकता है की आपके भीतर क्रोध के बदले करुणा पैदा हो | ज्यादातर लोग अहिंसक बनने का प्रयास करते हैं | वो अपने क्रोध को दबाने का प्रयास करते हैं | परंतु अहिंसा का अर्थ क्रोध को दबाना नहीं है | अहिंसा का अर्थ है कि क्रोध भीतर पैदा ही ना हो |
अब प्रश्न उठता है कि ऐसा कैसे बने ? अगर इस प्रश्न पर ही ध्यान देंगे तो उत्तर मिलना निश्चित है |