गौतम बुद्ध अपने शिष्यों को स्नेह का मूल्य समझाते हुए एक हथिनी के सुंदर व चंचल शिशु की कथा सुनाई |
एक हथिनी ने एक सुंदर शिशु को जन्म दिया | वह बड़ा होने लगा लेकिन उसे हाथियों का व्यवहार अच्छा नहीं लगता था | वो हाथियों के दल को छोड़कर एकांत में चला जाता और सोचता हाथी क्यों उत्पात मचाते हैं और जीवों को सताते हैं?
एक दिन वो हाथी एकांत में बैठा हुआ था | अचानक उसकी दृष्टि सामने एक वृक्ष पर पड़ी | वृक्ष पर एक बीमार बंदर बैठा था | वो उदास लग रहा था | हाथी उसके पास गया और बोला ” बंदर भाई बड़े दुखी दिखाई दे रहे हो बताओ तुम क्यों दुखी हो..?”
बंदर बोला : मैं शरीर से निर्बल हूं मेरे साथी मुझे छोड़ कर चले गए इसीलिए मैं दुखी हूं |
हाथी धीरज बांधता हुआ बोला ” तुम चिंता मत करो मैं जा रहा हूं तुम्हारे साथियों को बुला लाऊंगा यदि वो नहीं आएंगे तो मैं तुम्हारी सेवा करूंगा”
हाथी बंदर के साथियों की खोज में चल पड़ा कुछ दूर जाकर उसने देखा कि एक वृक्ष पर कुछ बंदर उछल कूद कर रहे हैं | हाथी ने सोचा यह सब ही उस बंदर के साथी हैं बंदर हाथी को देखते ही डर कर भागने लगा |
हाथी ने प्यार से बंदरों को रोकते हुए कहा ” मुझसे डरो नहीं तुम सब मुझे अपना प्रिय भाई समझो”
बंदरों ने ऐसा अद्भुत हाथी कभी नहीं देखा था | हाथी पुनः बोला ” तुम सब अपने बीमार साथी को अकेला छोड़कर क्यों चले आए हो..?” किसी बीमार को असहाय छोड़ देना अधर्म है..!!
वापस लौट कर उसने दुखी बंदर से कहा ” मैं तुम्हारे साथियों को ढूंढ लाया, अब यह तुम्हें कभी छोड़कर नहीं जाएंगे”
हाथी के उपकार ने उदास बंदर का मन हर्ष से भर दिया | हाथी की कोमल वाणी ने सभी जीवो में नए प्राण भर दिए | जो प्यार से बोलता है, दूसरों का उपकार करता है उसकी पूजा सभी लोग करते हैं |