गुस्सा करना तो प्रकृति का नियम है | इसे कोई बदल नहीं सकता| हां पर इसे कंट्रोल जरूर किया जा सकता है | इसी के संदर्भ में मैं आपको एक कहानी सुनाने जा रहा हूं |
एक स्त्री थी उसे बहुत क्रोध आता था | जरा सी कोई बात होती कि उसका पारा चढ़ जाता और वो कही अनकही सब तरह की बातें कहा डालती |
उसके इस स्वभाव से पूरा घर, पड़ोस सब परेशान थे | लोग उससे बातें करने में भी कतराते थे | वो भी अपनी इस आदत से बहुत परेशान रहती थी | जब उसका क्रोध शांत होता था तो उसे भी बहुत पछतावा होता था लेकिन फिर भी वह अपने इस आदत से परेशान थी |
संयोग से भगवान बुद्ध उस स्त्री के घर आए | स्त्री ने बुद्ध से कहा मैं बहुत दुखी हूं | मुझे बहुत क्रोध आता है | मैं उस पर काबू नहीं कर पाती |
बुद्ध ने कहा कोई बात नहीं है | मेरे पास इसकी दवाई है | कल मैं आऊंगा तो साथ लेता आऊंगा |
अगले दिन भगवान बुद्ध एक शीशी में दवा ले आए और उन्होंने दवा देते हुए स्त्री से कहा :-
इस दवा को इसी शीशी से पिया जाता है | जब तुम्हें क्रोध आए तो इस शीशी को मुंह में लगाकर उस समय तक दवा पीती रहना जब तक कि तुम्हारा क्रोध शांत ना हो जाए | मैं 7 दिन बाद फिर आऊंगा | इतना कहकर बुद्ध चले गए |
स्त्री ने उस दवा का प्रयोग शुरू किया | जैसे ही उसे क्रोध आता वह शीशी सी को अपने मुंह में लगा लेती |
7 दिन बाद जब बुद्ध आए तो स्त्री उनके पैरों में गिर पड़ी और बोली ” तथागत आपने मुझे बचा लिया”
ऐसी अनमोल दवा दी आपने कि मेरा क्रोध जाने कहां चला गया | कृपया करके इतना बता दीजिए कि आपने कौन सी दवा दी थी |
बुद्ध ने हंसते हुए कहा पगली….!!
शीशी में तो पानी था | शीशी के मुंह में आ जाने से तुम बोल नहीं सकती थी | गुस्सा दूर करने की सबसे अनमोल दवा मुंह बंद कर लेना है |