महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के प्रति बड़ा स्नेह रखते थे | एक दिन उन्होंने अपने शिष्यों को अंतरात्मा की व्याख्या करते हुए एक कथा सुनाई |
वो बोले किसी नगर में एक साधु रहता था | उसके चेहरे पर हर घड़ी हंसी, प्रसंता छाई रहती थी उसके जीवन में आनंद का साम्राज्य था |
लोग अपनी अपनी समस्याएं लेकर उसके पास आते थे और संतुष्ट होकर जाते थे |
एक दिन एक सेठ साधु के पास आया और उन्हें प्रणाम करके बोला :-
महाराज, मेरे पास किसी चीज की कमी नहीं है धन, दौलत, बाल – बच्चे सब कुछ है फिर भी मेरा मन बड़ा अशांत रहता है मैं क्या करूं….??
साधु ने जवाब नहीं दिया वह चुपचाप बैठा रहा और फिर उठ कर आगे चल दिया सेठ भी उसके पीछे पीछे चल दिया | फिर आश्रम के एक कोने में जाकर साधु ने आग जलाई और एक-एक करके लकड़ी उसमें डालता रहा आग तेज होती रही | कुछ देर के बाद वह सेठ की ओर बिना देखें उठ खड़ा हुआ सेठ को बड़ी हैरानी हुई |
वह तो अपना दुख लेकर साधु के पास आया था पर साधु अपने काम में लगा रहा और फिर बिना कुछ कहे वहां से जा रहा था | सेठ ने आगे बढ़कर कहा स्वामी जी मैं बड़ी आस लेकर आपकी सेवा में आया हूं मुझे कुछ रास्ता तो बताइए ..?
साधु बड़ी जोर से हंसते हुए बोला अरे मूर्ख, मैं इतनी देर से क्या कर रहा था..? तुझे रास्ता ही तो बता रहा था देख हर आदमी के अंदर एक आग होती है अगर उसमें प्यार की आहुति दो तो वह आनंद देती है | घिरना की आहुति दो तो वह जलती है | तू अपनी आग में रात दिन क्रोध, लोभ, मोह की लकड़ियां डाल रहा है अगर बीज अशांति के बोयेगा तो शांति का फल कहां से पाएगा..?
अपनी अंतरात्मा को टटोल सुख और दुख बाहर नहीं बल्कि तेरे भीतर हैं इसलिए कहा जाता है
मोको कहाँ ढूंढें बन्दे, मैं तो तेरे पास में ।
ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकांत निवास में ।
ना मंदिर में, ना मस्जिद में, ना काबे कैलाश में ॥
ना मैं जप में, ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपास में ।
ना मैं क्रिया क्रम में रहता, ना ही योग संन्यास में ॥
नहीं प्राण में नहीं पिंड में, ना ब्रह्माण्ड आकाश में ।
ना मैं त्रिकुटी भवर में, सब स्वांसो के स्वास में ॥
खोजी होए तुरत मिल जाऊं एक पल की ही तलाश में ।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, मैं तो हूँ विशवास में ||
सेठ की आंखें खुल गई उसे रास्ता मिल गया जिससे उसका जीवन नई दिशा में मुड़ गया |