भगवान बुद्ध अक्सर अपने प्रिय शिष्यों को उपदेश देते समय कोई ना कोई कथा अवश्य सुनाते थे | ताकि उनके उपदेश सरलता से समझा जा सकें | ऐसी ही एक कथा भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों को सुनाते हुए कहा :-
एक स्त्री थी | उसकी आंखें चली गईं | पहले एक गई, फिर दूसरी | वह बहुत परेशान रहने लगी | पति अपनी पत्नी का बोझ कब तक उठाता | वह उससे अलग रहने लगा | उसकी छोटी लड़की ने भी उससे मुंह मोड़ लिया |
स्त्री हर काम के लिए दूसरों पर आश्रित थी | पर उसे कौन सहारा देता है जिसके अपने ही छोड़ गए हों |
ऐसी हालत में उसकी एक पुरानी सहेली उसके पास आकर रहने लगी | लेकिन उसका व्यवहार बड़ा अजीब था | उस स्त्री से जब पहली बार पानी मांगों तो वो पिला देती लेकिन दूसरी बार मांगने पर कह देती कि मैं तुम्हारी नौकर नहीं हूं उठो घड़े से लेकर अपने आप पी लो |
वह कपड़े मांगती तो एक बार दे देती पर दूसरी बार मांगने पर कह देती कि अलमारी में रखे हैं जाओ अपने आप ले आओ |
कभी उसका मन घूमने को होता तो एक बार साथ चली जाती | दूसरी बार जाने की बात आती तो कह देती मुझे काम है, तुम अकेले घूमने जाओ | अंधी स्त्री का मन मरोड़ कर उठती और अपना काम करती |
सच्चाई यह थी कि सहेली उसे कम प्यार नहीं करती थी और ना ही काम से बचना चाहती थी | वह बार-बार दया दिखा कर उसको सदा के लिए अपाहिज नहीं बनाना चाहती थी |
धीरे-धीरे वह स्त्री सब काम अपने आप करने लगी | उसे किसी की सहारे की जरूरत ना रही | तब उसने समझा कि उसकी सहेली ने उसके ऊपर बहुत बड़ा उपकार किया है और फिर वह अंधों की एक संस्था में चली गई और वहां उसने ना जाने कितने असहाय भाई बहनों को अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया |