किसी नगर में एक सेठ रहता था | उसके पास लाखों की संपत्ति और भरा पूरा परिवार था | सभी तरह की सुख सुविधाएं थीं फिर भी उसका मन अशांत था |
जब उसकी परेशानी बहुत ज्यादा बढ़ गई तो वह भगवान बुद्ध के पास गया और अपना कष्ट उन्हें बता कर प्रार्थना की :-
तथागत, जैसे भी हो मेरी अशांति दूर कर दीजिए |
बुद्ध ने उसकी बात ध्यान से सुना और कहा :
अमुक नगर में एक बड़ा धनिक रहता है उसके पास जाओ वह तुम्हें रास्ता दिखा देगा |
सेठ ने सोचा कि तथागत उसे बहका रहे हैं उसने भगवान बुद्ध ने कहा : कि तथागत, मैं तो आपके पास बड़ी आस लेकर आया हूं आप ही मेरा उद्धार कीजिए |
भगवान बुद्ध ने फिर वही बात दोहरा दी | लाचार होकर सेठ उस नगर की ओर रवाना हुआ | सेठ ने वहां पहुंच कर देखा कि उस दंपत्ति का कारोबार चारों ओर फैला है, लाखों का व्यापार है और उस व्यक्ति का चेहरा फूल की तरह खिला हुआ है |
इतने में एक आदमी आ गया | उसका मुंह उतरा हुआ था |
वह बोला : मालिक, हमारा जहाज समुद्र में डूब गया लाखों का नुकसान हो गया |
धनपति ने मुस्कुरा कर कहा : मुनीमजी, इसमें परेशान होने की क्या बात है | व्यापार में तो ऐसा होता ही रहता है | इतना कहकर वह अपने साथी से बात करने लगा |
थोड़ी देर में एक दूसरा व्यक्ति आकर बोला : सरकार रुई का दाम चढ़ गया है हमें लाखों का फायदा हो गया |
धनिक ने कहा : मुनीमजी, इसमें खुश होने की क्या बात है, व्यापार में तो ऐसा होता ही रहता है |
सेठ को अपनी समस्या का समाधान मिल गया था | उसने समझ लिया कि शांति का स्रोत वैभव नहीं, मन की समता में है | उसने मन ही मन भगवान बुद्ध का धन्यवाद किया और घर आकर अपने व्यापार में लग गया |
यह कहानी हमें इतनी बड़ी बात सिखाती है कि चाहे कैसी भी परिस्थिति हो हमें अपने आप पर नियंत्रण रखना चाहिए क्योंकि हम ही हैं जो हर सुख दुख का कारण बनते हैं |