ईश्वर हर जगह हर रूप में कहीं भी प्रकट हो सकता है |
महात्मा बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्यों को ईश्वर की महिमा की कथा सुनाते हुए कहा :
एक वृद्धा थी | सदा भगवान के ध्यान में लगी रहती थी | अपने हाथों का बना खाना भगवान को खिलाने की उसकी बड़ी इक्छा थी |
एक बार भगवान ने उसके सपने में आकर कहा | मैं कल ज़रूर तुम्हारे हाथों का खाना खाऊंगा | वृद्धा खुश हुई उसने भगवान के लिए बढ़िया – बढ़िया खाना बनाने की सोची |
दुकान से रसोई का सामान लेकर लौटी तो घर के चबूतरे पर एक बूढ़े विपिन दंपत्ति दिखाई पड़े बदन पर छितरे बिखरे सूखे बाल, सर्दी में कांपते शरीर उसने वृद्धा से कहा :-
माता हम 2 दिन से भूखे हैं हमें थोड़ा सा खाना दे दो | वृद्धा का मन व्याकुल हो गया उसने सोचा | यह चीजें तो मैंने भगवान के लिए लाई हूं और फिर से खरीदने के लिए पैसे भी नहीं हैं क्या किया जाए |
थोड़ा सा हिचकिचाई फिर उसने सोचा भगवान आए तो और एक बार आने को कहूंगी आखिर भगवान तो इनके जैसे भूखे नहीं होंगे ना |
बस वृद्धा ने जल्दी से जल्दी खाना बनाया और उन्हें बड़े प्यार से खिलाया | अब उसके मन में शांति और अपार संतोष था |
भगवान तो नहीं आए | लेकिन रात को फिर भगवान ने दर्शन दिए तो वृद्धा ने पूछा ” भगवन् आपने वादा नहीं निभाया आप नहीं आए | आपने अच्छा किया वरना आप आते तो भी खिलाने को मेरे घर में कुछ भी नहीं था |
भगवान ने मुस्कुरा कर कहा मैंने वादा निभाया | तुमने मुझे प्यार से खाना खिलाया | इतना कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए |