किसी नगर में एक व्यक्ति रहता था | उसके आंगन में एक पौधा उग आया | कुछ दिनों बाद वह पौधा बड़ा हो गया और उस पर फल लगे |
एक दिन एक फल पक कर नीचे गिरा | उसे एक कुत्ते ने मुंह में दबा लिया | देखते ही देखते कुत्ते के प्राण निकल गए |
आदमी ने सोचा होगी कोई वजह | उसका ध्यान फल की ओर नहीं गया | कुछ समय बाद पड़ोसी का लड़का आया बढ़िया फल देखकर उसका मन ललचाया | उसने एक फल तोड़ा और जैसे ही दांत से काटा कि वह बेजान होकर गिर पड़ा |
अब वह व्यक्ति समझ गया कि यह विष का वृक्ष है | उसे बड़ा गुस्सा आया | उसने कुल्हाड़ी ली और वृक्ष के सारे फल काट – काट कर गिरा दिए |
लेकिन थोड़े दिन बाद फिर से फल उग आये और इस बार पहले से भी बड़े-बड़े फल लगे | उसने फिर कुल्हाड़ी उठाई और एक-एक शाखा को काट डाला और चैन की सांस ली |
एक कहावत है ना कि ना रहेगी बांस, ना बजेगी बांसुरी |
परंतु कुछ ही दिन बाद सारा पेड़ फिर से लहलहा उठा और फलों से लद गया | आदमी ने सिर पकड़ लिया | अब वह क्या करे |
वह व्यक्ति बुद्ध की शरण में गया और सारा हाल कह सुनाया |
सारा हाल सुनकर बुद्ध ने कहा तुम बड़े भोले हो तुमने फल तोड़े शाखाएं काटीं लेकिन यही नहीं सोचा कि जब तक जड़ रहेगा, पैर रहेगा तब तक फल आते रहेंगे | तुम चाहते हो कि इस बाला से छुटकारा मिले तो उसकी जड़ को काटो |
उस व्यक्ति को बोध हुआ तब उसने समझा कि बुराई की ऊपरी कांट – छांट से वह नहीं मिटती | उसकी जड़ काटनी चाहिए |
कुल्हाड़ी लेकर पेड़ की जड़ को काट दिया और हमेशा के लिए चिंता से मुक्त हो गया |