गौतम बुद्ध अपने शिष्यों को एक दिन सच्ची मित्रता की कहानी सुनाते हुए बोले |
दो मित्र थे | जो बड़े ही बहादुर थे | उनमें से एक बादशाह के ऊपर अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई | बादशाह बड़ा ही कठोर और बेरहम था | जब उसको मालूम हुआ कि उसके ऊपर किसी नौजवान ने आवाज उठाई है तो उसने उस नौजवान को फांसी के तख्ते पर लटका देने की आज्ञा दी |
नौजवान ने बादशाह से कहा आप जो कर रहे हैं वह ठीक है मैं खुशी-खुशी मौत की गोद में चला जाऊंगा लेकिन आप मुझे थोड़ा समय दे दीजिए जिससे मैं अपने गांव जाकर अपने बच्चों से मिल आऊं |
बादशाह ने कहा नहीं, मुझे तुम पर विश्वास नहीं है…!!
उस नौजवान का मित्र वहां मौजूद था वह आगे बढ़ कर बोला ” मैं अपने इस दोस्त की जमानत देता हूं अगर यह लौटकर ना आए तो आप मुझे फांसी दे दीजिएगा”
बादशाह चकित रह गया उसने अब तक ऐसा कोई व्यक्ति नहीं देखा था जो दूसरों के लिए अपनी जान देने को तैयार हो जाए | बादशाह ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली
उसे 6 घंटे का समय दिया गया |
नौजवान घोड़े पर सवार होकर अपने गांव की ओर रवाना हो गया और उसका मित्र जेल खाने के अंदर चला गया | नौजवान ने हिसाब लगाकर देखा कि वह 5 घंटे में लौट आएगा लेकिन बच्चों से मिलकर जब वह वापस आ रहा था तब उसका घोड़ा ठोकर खाकर गिर गया और फिर उठा ही नहीं |
नौजवान को भी चोटें आई पर उसने हिम्मत नहीं हारी | 6 घंटे बीते पर वह नौजवान नहीं लौटा तो उसका मित्र बड़ा खुश हुआ आखिर इससे बढ़कर क्या बात होती कि मित्र मित्र के काम आए |
वह भगवान से प्रार्थना करने लगा कि उसका मित्र ना लौटे | जिस समय मित्र को फांसी के तख्ते के पास ले जाया जा रहा था तो वह नौजवान वहां आ पहुंचा और उसने मित्र से कहा ” लो मैं आ गया” अब तुम घर जाओ मुझे विदा दो |
मित्र बोला नहीं, यह नहीं हो सकता तुम्हारी मियाद पूरी हो गई | नौजवान ने कहा “यह तुम क्या कहते हो सजा तो मुझे मिली है ना..?”
दोनों मित्र की मित्रता को बादशाह देख रहा था | उसकी आंखें भर आई | उसने उन दोनों को पास बुलाकर कहा “तुम्हारी मित्रता ने मेरे दिल पर गहरा असर डाला है जाओ मैं तुम्हें माफ करता हूं”
उस दिन से बादशाह ने कभी किसी पर जुल्म नहीं किया |