महात्मा बुद्ध ने अपनी कुटिया नगर से दूर वीराने में बना रखी थी | वहीँ बुद्ध अपनी साधना में लगे रहते थे | फिर भी अनेक लोग उनके पास अपनी कठिनाइयां लेकर आते थे और उनसे समाधान पाकर संतुष्ट भाव से वापस जाते थे |
बुद्ध की ख्याति सुनकर एक दिन नगर का सेठ भी उनके पास आया | उसके पास काफी धन था | उसका मानना था कि बिना धन के जीवन नहीं चल सकता | लेकिन धर्म के बिना तो कोई काम नहीं रुकता | फिर भी हमेशा धर्म की ही दुहाई क्यों दी जाती है | अपना संशय लेकर वह बुद्ध के पास पहुंचा |
उसकी शंका सुनकर संत ने कोई उत्तर नहीं दिया | उत्तर की प्रतीक्षा में सेठ कुटिया में ही रुक गया | रात हुई दीपक जलाया गया | धीरे-धीरे रात गहरी होने लगी |
सेठ ने पूछा ” तथागत दीपक क्यों जल रहा है?” मुझे उजाले में नींद नहीं आ रही है और यह कब तक जलेगा..??
बुद्ध ने कहा “जब तक अंधेरा रहेगा”
सेठ बुद्ध का मुंह देखने लगा | तब बुद्ध ने समझाया कि इस दीपक की तरह धर्म की भी इसलिए जरूरत है क्योंकि इस जगत में अधर्म है, जब तक अधर्म रहेगा तब तक धर्म की जरूरत बनी रहेगी |
सेठ को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया और वह संशय मुक्त होकर अपने घर लौट गया |