जब एक हत्यारा झूठ का सहारा लेकर अपने प्राणों की रक्षा कर सकता है सोचिए सत्य में कितनी शक्ति समाई है आज के उपदेश का भी यही विषय है कहते हुए बुद्ध ने अपने शिष्यों को एक कथा सुनाई |
एक व्यक्ति ने किसी की हत्या कर दी | राजा के सिपाही उसके पीछे पड़ गए | वह किसी तरह जान बचाकर भागता रहा | तभी सामने नदी आ गई | उसे पार करना जान जोखिम में डालना था | मगर सिपाहियों के हाथ पकड़ने का मतलब था “फांसी या लंबी कैद”
उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे | घबराकर उसने इधर-उधर देखा | नदी किनारे एक आदमी भभूत लगाकर साधु बना ध्यान मग्न बैठा था उसने सोचा क्यों ना वह भी ध्यान में ऐसे ही बैठ जाए |
उसने भी अपने तन पर राख लगा ली और आंखें बंद करके पैर के नीचे बैठ गया | साधु का अभिनय करते हुए वह शांत होकर बैठा था |
उसे आनंद आने लगा | ऐसा आनंद तो उसने पहले कभी महसूस नहीं किया था | राजा के सिपाही हत्यारे का पीछा करते हुए नदी किनारे पहुंचे | उन्होंने इस ध्यान मग्न साधु को बैठे देखा तो वे झुके और उनके चरण स्पर्श किए |
इसके बाद साधु बने हत्यारे के भीतर से ग्लानी होने लगी | वह हैरान हुआ कि मैं तो केवल ढोंगी साधु हूं मगर इन्हें क्या दिखाई पड़ गया जो इन्होंने मेरे पैर छू लिए | झूठ इतना कारगर हो सकता है तो सत्य का क्या पता कितना कारगर हो |
सिपाही पैर छूकर चले गए | लेकिन वह हत्यारा पूरी तरह बदल गया | उसके जीवन में क्रांति आ गई क्योंकि उसने देखा कि झूठी साधुता को इतना सम्मान मिल गया तो सच्ची साधुता को कितनी श्रद्धा मिलेगी |
बरसों से बंद उसकी आंखें पल भर के ध्यान में खुल गईं | इसी को कहते हैं ध्यान की ताकत | ध्यान की ताकत से बड़े-बड़े महापुरुष ने अपने आप को सिद्ध किया है |
आपके सामने प्रमाण है |
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