किसी राजा ने एक युवक की बहादुरी पर खुश होकर उसे राज्य का सबसे बड़ा सम्मान देने की घोषणा की | मगर पता चला वो युवक इससे खुश नहीं है |
राजा ने उसे बुलवाया और पूछा – युवक तुम्हें क्या चाहिए ? तुम जो भी चाहो मैं तुम्हें देने के लिए तैयार हूँ…!!
तुम्हारी बहादुरी और साहस इन पुरस्कारों से बहुत ऊपर है |
इस पर युवक ने जवाब दिया – महाराज क्षमा करें | मुझे मान – सम्मान, पैसा और पद नहीं चाहिए मैं तो केवल मन की शांति चाहता हूं |
राजा ने सुना तो वो बहुत मुश्किल में पड़ गया |
उसने कहा – तुम बड़ी अजीब चीज मांग रहे हो | जो चीज मेरे पास ही नहीं है वो मैं तुम्हें कैसे दे सकता हूं..!!
फिर कुछ सोचकर राजा बोला ” हां मैं एक महापुरुष को जानता हूं शायद वो तुम्हें मन की शांति दे सकें”
राजा स्वयं उस युवक को लेकर महापुरुष के आश्रम में गया |
वो महापुरुष कोई और नहीं स्वयं भगवान बुद्ध थे | जो अद्भुत रूप से शांत और प्रसन्न थे | राजा ने बुद्ध से प्रार्थना की कि उस युवक को मन की शांति प्रदान करें |
राजा ने उन्हें भी सफाई दी कि युवक ने अपनी बहादुरी के लिए यही पुरस्कार मांगा है | मगर मैं खुद ही शांत नहीं हूं फिर भला उसे कैसे शांति दे सकता हूं..! इसीलिए इसे आपके पास लेकर आया हूं |
इस पर बुद्ध बोले- राजन, शांति ऐसी संपदा नहीं है जिसे कोई ले या दे सके | उसे तो स्वयं ही पाना होता है उसे ना तो कोई दूसरा दे सकता है और ना ही वो दूसरों से छीनी जा सकती है | शांति तो स्वयं ही पाई जा सकती है | उसे कोई और नहीं दे सकता |
वो कहावत है ना – मोको कहां ढूंढे बंदे, मैं तो तेरे पास हूं |
अपने मन के अंदर झांकिये सुख और शांति कहीं बाहर नहीं वो आपके अंदर ही है |